कला उत्सव, स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार, की वर्ष 2015 से एक ऐसी पहल है, जिसका उद्देश्य माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की कलात्मक प्रतिभा को पहचानना, उसे पोषित करना, प्रस्तुत करना और शिक्षा में कला को बढ़ावा देना है। शिक्षा मंत्रालय माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों में सौंदर्यबोध और कलात्मक अनुभवों की आवश्यकता और इसके द्वारा विद्यार्थियों में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविधता के ज्ञान प्रदान करने को मान्यता देता रहा है। कला शिक्षा (संगीत, नाटक, नृत्य, दृश्यकलाएँ एवं ललित कलाएँ) के संदर्भ में की जा रही यह पहल राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा - 2005 की अनुशंसाओं पर आधारित है।
कला उत्सव वर्ष 2015 में आरम्भ हुआ, स्कूलों में कलाओं के उत्सव की वह पहल है जो प्रत्येक वर्ष आयोजित हो रही है। जिला/राज्य/राष्ट्रीय स्तर पर कला उत्सव की संरचना इस प्रकार की गई है जिसमें कला प्रस्तुतियाँ एवं प्रदर्शनियाँ सम्मिलित हैं। कला उत्सव की संरचनात्मक प्रक्रिया, विद्यार्थियों को भारत की जीवंत पारंपरिक एवं विभिन्न कलाओं के समझने, अनुसंधान एवं प्रस्तुतीकरण करने में सहायक होती है।
यह उत्सव विद्यार्थियों में भारत की जिला/राज्य/राष्ट्रीय सांस्कृतिक विरासत और उसकी जीवंत विविधता के प्रति जागरूकता लाने एवं उत्सव मनाने का मंच प्रदान करता है। यह उत्सव न केवल विद्यार्थियों में बल्कि उनसे जुड़े सभी व्यक्तियों में भी संस्कृति का प्रचार/प्रसार करता है। भविष्य में यह उत्सव शिल्पकारों, कलाकारों और संस्थाओं को विद्यालयों के साथ जोड़ने में सहायता प्रदान करेगा।
कला उत्सव की परिकल्पना एक समन्वित मंच उपलब्ध कराने का प्रयास है, जहाँ सामान्य विद्यार्थी और विशेष आवश्यकता समूह वाले विद्यार्थी (भिन्न क्षमताओं और विभिन्न आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थी) एक साथ अपनी क्षमताओं का उत्सव मना सकें । यह उनकी प्रतिभा को पोषित करने एवं दिखाने हेतु, उचित अवसर एवं अनुकूल वातावरण प्रदान करेगा और सीखने एवं सिखाने की प्रक्रिया को और अधिक मूर्त, रचनात्मक एवं आनंददायी बनाएगा। सभी विद्यार्थियों – सामान्य छात्र, छात्राएँ, वंचित वर्ग से आए विद्यार्थी तथा दिव्यांग विद्यार्थियों द्वारा एक साथ मंच साझा करने से बहुत सी पूर्वगामी सामाजिक रूढ़ियाँ टूटेंगी।
कला उत्सव केवल एक बार में ही समाप्त हो जाने वाली गतिविधि नहीं है, बल्कि यह कलात्मक अनुभव को पहचानने, खोजने, अभ्यास करने और प्रदर्शन की सम्पूर्ण प्रक्रिया का प्रथम चरण है। एक बार इस प्रक्रिया का हिस्सा बनने के बाद, प्रतिभागी विद्यार्थी अपनी जीवंत कला शैली को प्रस्तुत करने के साथ-साथ, उस सांस्कृतिक अनुभव एवं मूल्यों पर आधारित जीवन जीएगें।
नई शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा के माध्यम से कला और संस्कृति को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया है। नई शिक्षा नीति के अनुसार; “भारतीय संस्कृति और दर्शन का विश्व में बड़ा प्रभाव रहा है। वैश्विक महत्व की इस समृद्ध विरासत को आने वाली पीढि़यों के लिए न सिर्फ सहेज कर संरक्षित रखने की जरूरत है बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था द्वारा उस पर शोध कार्य होने चाहिए, उसे और समृद्ध किया जाना चाहिए और उसमें नए-नए उपयोग भी सोचे जाने चाहिए।” (राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020)
यह नीति छात्रों के सांस्कृतिक विकास एवं उत्थान के महत्व पर प्रकाश डालती है जिसके फलस्वरूप, छात्रों में अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ अपनी संस्कृति के प्रति जुड़ाव तथा अन्य संस्कृतियों की सराहना करने की क्षमता में भी वृद्धि होगी। नई शिक्षा नीति छात्र-छात्राओं के बीच विकसित होने वाली आगामी सांस्कृतिक अवधारणा को एक प्रमुख योग्ता एवं गुण के रूप में पहचानती है तथा कला को इस ज्ञान को प्रदान करने के लिए मुख्य माध्यम के रूप में प्रस्तावित करती है। यह नीति छात्रों की संज्ञानात्मक और रचनात्मक क्षमता को बढ़ाने में कला की क्षमता को भी इंगित करती है। कला उत्सव 2020 को देश की विविध सांस्कृतिक विरासत का अन्वेषण, आदान-प्रदान और उसे अनुभव करने के लिए, एक उचित मंच बनाने हेतु, नई शिक्षा नीति की परिकल्पना को इसमें सम्मिलित करने का प्रयास किया गया है।